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विकल्प / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
जिस देश की जवानी
नाच गाने और मुजरे में व्यस्त हो
स्खलित हो रही हो कोठों में
जिस देश की
नदियाँ. पहाड़ और ज़मीन
यहाँ तक कि
आसमान भी बिक चुका हो
अन्न उपजा कर भी
किसान मर रहे हों भूख से
और निज़ाम हो मूर्ख
तब उस देश के
आम आदमी के लिए
क्या बचता है
सिर्फ कोई एक विकल्प?
हाँ!
बचता है सिर्फ़ विकल्प
छीन ले वह बांसुरी
और मेघ बन बरस पड़े
रोम पर