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विकसित होता बच्चा / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
उसे चहारदीवारी अच्छी लगती है
लेकिन चीजें जो उसे पसंद हैं उन्हें पाने के लिए
बाहर की ओर भी देखता है
हमेशा एक आशा बनी हुई है,
हवा कोई अच्छी सी चीज लाकर भर देगी उसकी मुठ्ठी में
और अगर कोई भी नहीं तो
समय ही उसकी सारी झिझक खोल देगा एक दिन
और अपने प्रस्ताव को वह खुद पहुंचायेगा दूसरों तक
इस तरह से वह बड़ा हो चुका होगा,
संबंध बनाने और बिगाडऩे के तरीके
थोड़े से जानने लगा होगा
लेकिन नहीं समझता होगा शायद संबंधों की गहराई को
जिससे भी थोड़ा सा प्रेम मिला, लगा यही दुनिया में एक है,
और धैर्य कितना कम था उसमें कि
जब रास्ते खुलने लगे थे, खूबसूरत दुनिया के
पहली ही नजर में परास्त हो गया,
और समझ न सका कि उसका यौवन कितना सीमित है
और प्यार असीम चारों ओर फैला हुआ।