किसी विचारधारा का पनपना 
निर्भर करता है 
बहुत हद तक 
किसी व्यक्ति विशेष की 
परवरिश 
और आस – पास के माहौल पर l
प्रतिछवि है यह 
समाज में घटित होती 
अनंत घटनाओं की l
होता आया है टकराव 
विचारधाराओं का 
आदिकाल से ही 
इनकी बलिवेदी पर बही हैं
रक्त की धाराएं भी
पहुंची है अपूर्णीय क्षति 
मानव सभ्यता को l
मैं भी चाहता हूँ देना 
एक सकारात्मक दिशा 
विचारों के इस प्रवाह को 
ताकि जन्म ले सके 
एक सार्वभौमिक नव विचारधारा l
 
जिसकी उर्जा का बहाव ले जाए 
प्रगति एवं खुशहाली की राह पर 
बिना भेद किये
प्रताड़ित, शोषित व कुंठित  
और अवसादों से ग्रसित   
हर जन  को l
इर्ष्या, द्वेष और कपट रहित 
ऐसी विचारधारा की
नितांत जरुरत  है आज 
भटकती मानवता को l