भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विजन गिरि पथ पर / नामवर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विजन गिरि पथ पर
चटखती
पत्तियों का लास ।

हृदय में
निर्जल नदी के
पत्थरों का हास ।

’लौट आ,
घर लौट’
गेही की कहीं आवाज़ ।

भीगते से वस्त्र
शायद
छू गया वातास ।