भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विज्ञ है पर ज़िन्दगी को कम समझता है / शिव ओम अम्बर
Kavita Kosh से
विज्ञ है पर ज़िन्दगी को कम समझता है,
मैं विवश हूँ वो मुझे निर्मम समझता है।
है अमावस्या यहाँ हर कामना खुद में,
चित्त का विभ्रम उसे पूनम समझता है।
पढ़ नहीं पाता हृदय की धड़कनों को वो,
शेष सारे शास्त्र निगमागम समझता है।