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विदाई गीत / 2 / भील
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भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सासरे केलवता घणो बुदो, लागसे वो लाड़ी।
माय के छुड़वता घणो बुदो, लागसे वो लाड़ी।
बास के छुड़वता घणो बुदो, लागसे वो लाड़ी।
भाइ के छुड़वता घणो बुदो, लागसे वो लाड़ी।
भोजाइ के छुड़वता घणो बुदो, लागसे वो लाड़ी।
बहणिस् के छुड़वता घणो बुदो, लागसे वो लाड़ी।
बणवि के छुड़वता घणो बुदो, लागसे वो लाड़ी।
फुवाक के छुड़वता घणो बुदो, लागसे वो लाड़ी।
फुई के छुड़वता घणो बुदो, लागसे वो लाड़ी।
- विदाई हो रही है आँगन में पहुँचने पर वर पक्ष की महिलाएँ गीत में कह रही हैं- लाड़ी! तुझे ससुराल अच्छा नहीं लगेगा। माता, पिता, भाई, भावज, बहिन, बहनोई, फूफा और बुआ को छोड़ते हुए तुझे अच्छा नहीं लगेगा।