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विदाई गीत / 3 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सोना नो ढुल्यो बेनी, रूपा ना पाया।
ढुल्यो छुड़ि देजी बेनी, माय झुणिं छुड़जी।
सोना नो ढुल्यो बेनी, रूपा ना पाया।
ढुल्यो छुड़ि देजी बेनी, भाइ झुणिं छुड़जी।
सोना नो ढुल्यो बेनी, रूपा ना पाया।
ढुल्यो छुड़ि देजी बेनी, बास झुणिं छुड़जी।
सोना नो ढुल्यो बेनी, रूपा ना पाया।
ढुल्यो छुड़ि देजी बेनी, भोजाइ झुणि छुड़जी।
सोना नो ढुल्यो बेनी, रूपा ना पाया।
ढुल्यो छुड़ि देजी बेनी, बहणिस् झुणि छुड़जी।

- वधू पक्ष की महिलाएँ अश्रुपूरित आँखे लिये विदा कर रही हैं और कहती हैं कि- तेरा पलंग सोने का है और उसके पाये चाँदी के हैं। पलंग छोड़ देना परन्तु माता का मत छोड़ना। इसी प्रकार पिता, भाई-भौजाई एवं बहन को नहीं छोड़ने का आग्रह किया गया है। इस गीत में मुख्य रूप से अच्छे सम्बन्ध बनाये रखने के लिए आग्रह
किया गया है।