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विदाई / अब्दुल्ला पेसिऊ

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हर रात जब तकिया
दावत देती है
हमारे सिरों को मातम मनाने का
जैसे हों वे धरती के दो धुव्रांत

तब मुझे दिख जाती हैं
हम दोनों के बीच में पड़ी
कौंधती खंजर-सी
विदाई
 
नींद काफूर हो जाती है मेरी
और मैं अपलक देखने लगता हूँ उसे
 
क्या तुम्हें भी
दिखाई दे रही है वो
जैसे दिख रही है मुझे?
 

अंग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र