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विदाई / प्रिया जौहरी

अब विदा कर दो मुझे
मां
तेरे आंचल को छोड़
किसी और दामन से
जुड़ने को
अब विदा कर दो
तेरी गोद में बैठ बहुत से निवाले खाए थे
अब उस गोद से उतार
मेरी चुनरी आंचल में
गुड़ - धानी डाल
अब विदा कर दो मुझे
मायके में बचपन की गांठें खोल
नए रिश्तों की गांठे
बाँधने को
अब विदा कर दो मुझे
कभी मैं एक नन्हीं बच्ची थी
अब बहू, मां, बनने को
अब विदा कर दो मुझे
अब तेरा ये घर मेरा नहीं
बस यहीं सोच के
अब विदा कर दो मुझे
कुछ परंपरा ,मान्यताएँ और रिवाज
निभाने को,
एक नया घर सजने को
अब विदा कर दो मुझे
बस वैसे ही विदा कर दो मुझे
जैसे कभी तुमको
तुम्हारी माँ ने किया था
विदाई एक बार नहीं होती
हर उस पल में होती है
जब जब कोई भी लड़की विदा होती है
क्यों कि ब्याह कैसा भी हो
विदाई तो सबकी एक-सी होती है।