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विदा का समय / शहंशाह आलम
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परितोष के लिए
विदा का समय आ गया मित्र
हम ख़ूब रहे साथ
हम ख़ूब घूमे साथ
साथ खाई बाजरे की रोटी
साथ चखी पुदीने की चटनी
आओ गले लग जाओ
विदा करो तो ऐसे करो
लगे कि हमें फिर-फिर मिलना है
कहीं न कहीं
किसी न किसी शक्ल में
किसी न किसी वितान में।