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विदेशी धरती / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
यहाँ मेरी गली में
दूर तक
फैला हुआ
सन्नाटा है -
मेरी
सडकों पर
कोई मुण्डियाँ
आपस में
नहीं टकराती
यहाँ शहर भी
तनिक जंगल से
दूर तक आँखों को
बेन्धते हैं ..
हरियाली भी जरा
कमतर ही है ...
बड़े बड़े बंद
घरों के दरवाजों
के पीछे
सूने-उदास
अनगनित कमरे
अलग- थलग ...
फिर भी बदनाम
है यह शहर
गाँव और बसेरे
कि रात दिन
यहाँ रंगरलिया
होती हैं
क्वारियों की कोख
हरी -रहती है ...
ब्याहतायें
सूखी डंडी
उबड -खाबड़
संस्कृति की
टोह लेते लेते
थक जाती हैं ..
कैसा है
यह रहस्य
यह अजूबा
जो बांध कर भी नही
बांधता -
और बिन बंधे
हो जाती है
उर्वर उन की कोख