पूरो ज्ञान ध्यान पाये दया दृढ़ कै दृढ़ाय, सन्त को सुमन्त गाय छोड़ि छन्द वन्द की।
कामिनी कनक दोउ तोरि डारि फंद वोउ, देखो वात बूझि कोउ आसरा गोविन्द की॥
धरनी सुढार ढार लोक-चारते नियार, तहाँ न अँधार जँह चाँदनी है चन्द की।
भावे साधु-संगति भगति भगवन्त जी कि, जानिये कृपा वली विनोदानन्द की॥29॥