आख़िर, 
गया थम ! 
उठा- 
चीखता 
तोड़ता - फोड़ता 
लीलता 
क्रुद्ध अंधड़ ! 
तबाही.... तबाही.... तबाही ! 
इधर भी; उधर भी 
यहाँ भी; वहाँ भी ! 
दीखते 
खण्डहर.... खण्डहर.... खण्डहर, 
अनगिनत शव ! 
सर्वत्र निस्तब्धता, 
थम गया रव ! 
दबे, 
चोट खाये, 
रुधिर - सिक्त 
मानव... मवेशी... परिन्दे 
विवश तोड़ते दम ! 
भयाक्रांत सुनसान में 
सनसनाती हवा, 
खा गया 
अंग-प्रति-अंग 
लकवा ! 
अपाहिज 
थका शक्ति-गतिहीन जीवन, 
विगत-राग धड़कन ! 
भयानक क़हर 
अब गया थम, 
बचे कुछ 
उदासी-सने चेहरे नम ! 
सदा के लिए 
खो 
घरों-परिजनों को, 
बिलखते 
बेसहारा ! 
असह 
कारुणिक 
दृश्य सारा ! 
चलो, 
तेज अंधड़ 
गया थम ! 
गहर गमज़दा हम !