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विपदा से हमरा के / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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विपदा से हमरा के
हरदम बचाव ऽ हरि
ई ना बाटे मिनती हमार
जब जहाँ विपदा से
सामना जे होखे प्रभु
हम नाही होईं भयभीत
निडर बनाव हरि हमरा के अतना कि
गाई हम विपदो में गीत
दुखित व्यथित मन के
धीरज धरावे खातिर
चाही नाहीं संत्वना के भीख
दुःख पर विजय पाई
पीड़ा के पराजित करीं
अइसने द हमरा के सीख
मिले नाहीं कवनो मदत
केनहूँ से जदि
टूटे पावे बल ना हमार
मनवाँ में हीनता ना कबहूँ समाए पावे
बनीं नाहीं कबहूँ लाचार।
दुनिया मे चाहे हम कतनो घटी उठाई
चाहे हम ठगाई बार-बार
कतनो अनिष्ट होखे, तबहूँ न होखे पावे
दीन हीन मनवा हमार।
कष्ट-काँट में से हमें
आके तू बचा लऽ हरि
ई ना बाटे प्रार्थना हमार
हम चाहीं पवँरे के बल रहो हमरा में
संकट ऽ के सागर ऽ अपार
दुखवा के बोझवा के
हलुकऽ बना द हरि
ई ना माँगी तहरा से भीख
बोझवा के लेले हम डेगवा बढ़ावत रहीं
इहे दे द हमरा के सीख
सुखवा में सिरवा नवा के करीं सुमिरन
तहरा के करीं हम याद
दुखवा में दुनिया के लोग भागे धोखा देके
तबहूँ ना मन में बिखाद
तहरा पर राफ नाहीं होखे हरि कबहूँ
मन के सिखा द इहे रीत
सभे उपहास करे दुरदिन अइला पर
तूहीं हउवऽ दुरदिन के मीत।।