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विमल छवि तोर जननिः मन भावय! / यदुनाथ झा 'यदुवर'
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विमल छवि तोर जननिः मन भावय!
उज्ज्वल मुकुट शीश हिमगिरि लसु
पद-पंकज रतनेश धोआबय॥
गंग, यमुन, सरयू शुभ सरिता
उर वरमाल सुमन पहिराबय।
कानन उपवन बाग आदि सौँ
हरित वरणि जन हिय हरषाबय॥
शस्य शालि फल फूल मूल लखि
सतत स्वजन मन आनन्द पाबय।
गिरि सागर नद नदी अनूपम
प्रकृति जनिक उर सुख उपजाबय॥
त्रिसत कोटि आननसौँ नित दिन
कलकल मधुर निनाद सुनाबय।
‘यदुवर’ स्वर्ग सहोदरि, सुखकरि
भारत मा! तव यश-जग गाबय॥