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विरहा सुनायें / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
तारों भरी ये रजनी न होती।
राहें सजी यों सजनी न होती।
रातें सदी से विरहा सुनायें,
चंदा बिना ये कथनी न होती।
आकाश गंगा छलके धरा पै,
रत्नों भरी ये धरनी न होती।
शोभा निराली रजनीश प्यारे,
पूनों निशा ये कहनी न होती।
प्रेमी सदा तू विधु मान तेरा,
दूरी तुम्हारी सहनी न होती।