भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विरासत में / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विरासत में
बेगानापन, अकेलापन
व अंधेरे ही मिले मुझे

अपने पीछे
छोड़ जाऊंगी
अपनेपन की विरासत मैं

छोड़ जाऊंगी
चाँदनी की
मुट्ठी भर उजास
अमावस के समान्तर

छोड़ जाऊंगी
अपनी बातों का पुलिन्दा
खिलखिलाती हंसी
खुनक से जिसकी
भर जायेगा
तुम्हारा एकान्त