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विलोमानुपात / दिनेश कुमार शुक्ल

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साक्षरता क्या बढ़ी
कि लुप्त होने लगीं पुस्तकें
बढ़ती समृद्धि ने
छीन लिये कितनों के रोज़गार
अन्न ने ही हर लिये
अन्न उपजाने वालों के प्राण
छीजते पौरुष के साथ-साथ
बढ़ने लगी पुरुषग्रन्थि
कुरूपता के बढ़ते घटाटोप में
बाढ़-सी आ गयी विश्वसुन्दरियों की

विश्वसुन्दरियों का रुदन
सुना तो होगा तुमने भी
या
इतना डूब गये संगीत की प्रचुरता में
कि सुनने की शक्ति ही चली गयी?