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12:17, 13 दिसम्बर 2010
<poem>'''अंगूठाभर हैं नन्हे मियाँदे रहा हूँ शुभकामनाएँ'''
भय से थरथराती हुई आँखों में
कई रात गुजारने के बाद
बारूद में भुने हुए बच्चों के
हाथ-पांव समेट रहे हैं
गुजरात के नन्हे मियाँ
पिछली चार पीढ़ियों से बच्चों की मुस्कान कोपटाखों में रचे-बसे नन्हे मियॉ कहते हैंकिसानों के खलिहान कोबच्चे खुदा औरतों के आसमान कोचिड़ियों की नियामत हैंउड़ान कोइनकी निगाहों से ही चुराकर भरता दे रहा हूँ पटाखों में रोशनीजब बच्चे ही नहीं रहे तब कहाँ से आएगी पटाखों में रोशनीशुभकामनाएँ।
अब वे नहीं बनाएंगे पटाखे
नन्हे मियाँ देश के पटाखे न बनाने से विधान कोकहीं कुछ भी नहीं बिगड़ेगासंसद के ईमान कोबाजार का पेट तो भर जाएगाजीवन के संविधान कोचीन और अमरीका मनुष्य के पटाखों सेसम्मान को दे रहा हूँ शुभकामनाएँ।
कभी-कभार उनके घर प्रेम के सामने से गुजरते हुएउफान कोअचानक ठहर जाऐंगे किसी के कदमऔर उसके कानों में गूँजेगी वही आवाजकल ही तो दिया था / आज फिर आ गयाहृदय की जुबान कोफोकट संस्कृति की लत बहुत बुरी होती है/ले अब मत अइयो ....... आन कोहाँ सम्भाल धर्म के जलइयोंइमान कोबहुत खतरनाक खेल है बारूद कादे रहा हूँ शुभकामनाएँÄ
इस कविता में एक सुधार जरूरी है मित्रोंकलैण्डर के दिनमान कोनन्हे मियाँ केवल गुजरात इतिहास के नहीं हैंवर्तमान कोवे मेरठ भविष्य के भी थेअनुमान कोमुरादाबाद भोर के भी और मुम्बई के भी अनुसंधान कोलहौर और इस्लामाबाद में भी रहते हैं दे रहा हूँ शुभकामनाएँ।नन्हे मियॉजो अब नहीं बनाएंगे पटाखे नन्हे मियॉन तो मुसलमान हैं न हिन्दूसिर्फ अंगूठाभर हैं जिस पर पुती हुई है स्याही ।
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