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नाले / प्रदीप मिश्र

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्रदीप मिश्र|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>''' नाले''' 
हर शहर में पाये जाते हैं नाले
महानगरों के लिए नदियाँ नाला
मकानों के सामने से गुजरने गुज़रने कीइजाजत इज़ाज़त नहीं होती
पिछवाड़े पैदा होते
वहीं से शुरू होती जीवन यात्रा
सुस्ताने का ठौर नहीं पाते नाले
इनके पेट से गुजरती गुज़रती है
शहर की सारी गंदगी
और मस्तिष्क में ट्यूमर की तरह होती है
शहर का हिस्सा होते हैं
हिस्सेदार होते हैं
 
अच्छे-बुरे दिनों के
ढलते जाते हैं उम्र के साथ
इनके बहाव में
शहर के स्वास्थ्य के लिए जरूरी ज़रूरी हैं
बहते हुए नाले
जिस तरह से घर के लिए
जरूरी ज़रूरी होतीं हैं नालियाँ
चाँदनी के लिए काली रात
समुन्द्र समुद्र के लिए खारापनख़ारापन
जरूरी ज़रूरी हैं कुछ बुरी चीजें चीज़ें भी
इस दुनिया की सुन्दरता के लिए ।
 
</poem>
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