भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वायरस / प्रदीप मिश्र

104 bytes added, 15:28, 13 दिसम्बर 2010
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वायरस
 
 
उनकी कोई जाति नहीं होती
किसी राष्ट्र के नागरिक भी नहीं होते हैं वे
पिता की तरह उंगलियों को थाम लेते हैं
माँ की तरह बहते हैं
दिल से दिमाग तक
इन खतरनाक वायरसों की चर्चा
पूरी दुनिया में है
इनकी पहचान के सारे सूत्र
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits