Changes

<poem>
कहाँ बनना, संवरना चाहती हूँ
मैं ख़ुशबू हूँ, बिखरना चाहती हूँ
अब उसके क़तिलाना ग़म से कह दूँदो मैं अपनी मौत मरना चाहती हूँ
हर इक ख्वाहिश, ख़ुशी और मुस्कराहट
समुन्दर में उतरना चाहती हूँ
सभी से मश्वरे लेने का मतलबज़माना चाहता है और ही कुछ
मैं अपने दिल की करना चाहती हूँ
है रहता मुझमें आवारा परिंदाख़यालों के परिंदेमैं उसके इनके पर कतरना चाहती हूँ
कोई बतलाए क्या है मेरी मंज़िल
थकी हूँ, अब ठहरना चाहती हूँ
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits