भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमदम / गुलज़ार

1,671 bytes removed, 03:06, 17 दिसम्बर 2010
पृष्ठ से सम्पूर्ण विषयवस्तु हटा रहा है
आजकल मेरे दिल मे एक अजीब सी उलझन हैकारण जानना चाहा तो लिखा अपने दिल को एक खतऔर माँगा जबाब उसका .............कुछ देर के इन्तेजार के बाद जबाब आयाजो कुछ इस तरह था ..........बहुत बुरा हाल है,हमारा इनदिनों पहले तो एक जिस्म मे धडकते थेअब दो जिस्मो मे धडकना पड़ता है कौन सा अपना है जानने के लिएदिन रात भटकना पड़ता हैएक दिन यु ही भटकते भटकतेएक दिल से मुलाकात हो गयीअजनबी थी वो मगर जानी-पहचानी सी लगीमैने उससे उसके भटकने का कारण पूछातो पता चला उसे भी दो जिस्मो मे धडकना पड़ता हैकौन सा अपना है जानने के लिए दिन रात भटकना पड़ता हैबातो बातो मे पता चला मै उसके और वो मेरे जिस्म मै धड़कती हैतो हमने तय किया की हम एक हो जाते है ............और अब तुम दोनों भी एक हो जाओ .................aditya kashyap