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12:38, 20 दिसम्बर 2010 <poem>कौन किसको क्या बताये क्या हुआ
हर अधर पर मौन है चिपका हुआ
जब भी ली हैं सिन्धु ने अंगड़ाईयां
तट को फिर देखा गया हटता हुआ
वक्त की आँधी उमड़ कर जब उठी
आदमी तिनके से भी हल्का हुआ
बाँटने आये है अंधे रेवड़ी
हाथ अपना खींच लो फैला हुआ
भीड़ में इक आदमी मिलता नहीं
आदमी अब किस कदर तन्हा हुआ
सोचता सोया था अपने देश की
स्वप्न में देखा मकां जलता हुआ
कह रहें हैं आप जिसको दिल मेरा
दर्द का इक ढेर है सिमटा हुआ</poem>