{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार अनिल|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल}}{{KKCatGhazal}}<poemPoem>हर तरफ तरफ़ इक सनसनी है इस शहर में
मौत की चादर तनी है इस शहर में
जो सितम की बात करते हैं, उन्ही की
आस्तीं खूं खूँ में सनी है इस शहर में
हर गली बारूद ढोती हैं हवाएंहवाएँ
हर सड़क खंजर बनी है इस शहर में
राम जाने रंग कैसा धूप का हो
रक्त रंजित चांदनी चाँदनी है इस शहर में
वहम होता है 'अनिल ' शमशान का अब
खामुशी ख़ामुशी इतनी घनी है इस शहर में </poem>