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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=अजेय|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>हमें याद है
हम तब भी यहीं थे
जब ये पहाड़ नहीं थे
फिर ये पहाड़ यहाँ खड़े हुए
फिर हम ने उन पर चढ़ना सीखा
और उन पर सुन्दर बस्तियाँ बस्तियाँ बसाईं.
भूख हमे तब भी लगती थी
फिर हम ने शब्द इकट्ठे किए
उन्हे दर्ज करना सीखा
और खूबसूरत कविताएं ख़ूबसूरत कविताएँ रचीं
प्यार भी हम ऐसे ही करते थे
और हमारी नींद में शोर .....
ज़िन्दा हथेलियाँ होती थीं
ज़िन्दा ही त्वचाएं <br />त्वचाएँ  
फिर पता नहीं क्या हुआ था
अचानक हमने अपना वह स्पर्श खो दिया
क्या हुआ था ?
[[केलंग ’केलंग,27.08.2010]]
</poem>
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