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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=अजेय|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>तुम्हारी जेबों मे टटोलने हैं मुझे
दुनिया के तमाम खज़ाने
सूखी हुई खुबानियां खुबानियाँ
भुने हुए जौ के दाने
काठ की एक चपटी कंघी और सीप की फुलियांफुलियाँ
सूँघ सकता हूँ गन्ध एक सस्ते साबुन की
मुझे कहना है धन्यवाद
एक दुबली लड़की की कातर आँखों को
मूँगफलियां मूँगफलियाँ छीलती गिलहरी की नन्ही पिलपिली उंगलियों उँगलियों को
दो -दो हाथ करने हैं मुझे नदी की एक वनैली लहर से आँख से आँख मिलानी है हवा के एक शैतान झौंके झोंके से
मुझे तुम्हारी सब से भीतर वाली जेब से चुराना है
मेरे बेशुमार दोस्त खड़े हैं हाथ फैलाए
कोई खबर ख़बर नहीं जिनको
कि कौन सा पहर अभी चल रहा है
और कौन गुज़र गया है अभी -अभी
सौंपना है माँ
उन्हें उनका अपना सपना
लौटाना लौटानी है उन्हें उनकी गुलाबी अमानत
सहेज कर रखा हुआ है
जो जिसे तुम ने बड़ी हिफाज़त से
अपनी सब से भीतर वाली जेब में !
 
[[सुमनम , 05.12.2010]]
</poem>
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