{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=अजेय|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>एक अच्छे आदमी की तरह
एक अच्छा गाँव भी
एक बहुचर्चित गाँव नहीं होता.
अपनी ज़िन्दगी के पहाड़े गुनगुनाता
अपनी खड़िया से
अपनी सलेट -पट्टी पे
अपने भविष्य की रेखाएँ उकेरता
वह एक गुमनाम क़िस्म का गाँव होता है
अपनी कुदाली से
अपनी मिट्टी गोड़ता
अपनी फसल फ़सल खाता
अपने जंगल के बियाबानों में पसरा
वह एक गुमसुम क़िस्म का गाँव होता है.
अपनी चटाईयों और टोकरियों पर
अपने सपनों की अल्पनाएं अल्पनाएँ बुनता
अपने आँगन की दुपहरी में
अपनी खटिया पर लेटा
अपनी यादों का हुक्का गुड़गुड़ाता
चुपचाप अपने होने को जस्टिफाई जस्टिफ़ाई करता
वह एक चुपचाप क़िस्म गाँव होता है.
एक अच्छे आदमी की तरह
[[केलंग , 21 मई 2010]]
</poem>