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सबको न गले तुम यूँ ऐसे लगाया करो 'श्रद्धा'हमदर्द मगर कोई बनाया करीब अपने बिठाया करो 'श्रद्धा'
बैठा करो कुछ देर चराग़ों को बुझा करबैठो कभी जब अक्स तुम्हारा हो मुकाबिल आँखें न कभी ख़ुद खुद से, न चुराया करो 'श्रद्धा'
जाया करो जाओ किसी मेले कभीमें, बागों कभी बाग़ में भी टहलो
हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो 'श्रद्धा'
बंदूक-बन्दूक तमंचे से जो घिर जाए ये बचपनही दिखाते हो तुम अक्सर पर्वत, नदी, फूलों से मिलाया बच्चों को परिंदे भी दिखाया करो 'श्रद्धा'
बादल हो घने गम के चमकती हो बिजलियाँतुम दर्द की बरसात में रोजाना नहाओ सूखे में भी मल-मल के नहाया करो 'श्रद्धा'
ये क्या कि हो जाना तेरा महफ़िल में भी तन्हाआते ही, चले जाने की उलझन को लपेटे आते हो , तो इस तरह न आया करो 'श्रद्धा'
नुकसान-नफ़ा सोच के रिश्ते नहीं बनतेरिश्तों को तिजारत की तराजू से न तोलो कुछ त्याग-समर्पण भी तो लाया उठाया करो 'श्रद्धा'
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