सरसर<ref>रेगिस्तान की गर्म हवा</ref> लगे सबा<ref>ठंडी हवा</ref> मुझे, गर पास तू ए जाँ नहीं
मैं जल रही थी, मिट रही थी, इंतिहां थी प्यार कीअंजान वो रहा मगर, क्यूंकी उठा धुआँ नहीं कल रात पास बैठे जो, हम राज़दार हो गयेगए
टूटा है ऐतमाद बस, ये तो कोई ज़ियाँ<ref>नुकसान</ref> नहीं
क्यूँ दिल मेरा येमैं जल रही थी मिट रही, दिलजलों थी इंतिहा ये प्यार की नासेहा<ref>नसीहत</ref> सुने अंजान वो रहा मगर, शायद उठा धुआँ नहींमाँगा करे दो प्यार कुछ तो ज़रूर बात थी, मिलने के पलबाद अब तलक खुद की तलाश में हूँ मैं, लेकिन मेरे निशाँ नहीं दुश्मन बना जहान क्यूँ , ऐसी फिज़ा बनी ही क्यूँ मेरे तो राज़-राज़ हैं, उम्रे जाविदाँ<ref>लंबी ज़िंदगी</ref> कोई भी राज़दां नहीं
अंदाज़-ए-सुखन फ़िक्र और था “श्रद्धा” ज़ुदाई में तेरीलिख के कह कर ग़ज़ल में राज़ सब, कुछ भी किया बयाँ नहीं
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