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घाट मुर्दा है, गली मुर्दा है, घर मुर्दा है / कुमार अनिल
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15:17, 28 दिसम्बर 2010
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|रचनाकार=कुमार अनिल
|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल
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<poem>घाट मुर्दा है, गली मुर्दा है, घर मुर्दा है
मैं जहाँ रहता हूँ वो सारा शहर मुर्दा है
Shrddha
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