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मल्लाह बन के बैठे थे कल तक जो नाव में / कुमार अनिल
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15:18, 28 दिसम्बर 2010
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|रचनाकार=कुमार अनिल
|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल
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<poem>मल्लाह बन के बैठे थे कल तक जो नाव में
लो आज वो भी व्यस्त हैं अपने बचाव में
Shrddha
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