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<poem>महफ़िल में तन्हा रहता हूँ
देखो मै क्या क्या सहता हूँ

जब पुख्ता बुनियाद है मेरी
फिर क्यों खंडहर सा ढहता हूँ

लफ्फाजों की इस दुनिया में
इक मैं हूँ जो सच कहता हूँ

तुम हँसते हो फूलों जैसे
मैं आँसू आँसू बहता हूँ

बाहर से हूँ ठंडा- ठंडा
अन्दर से कितना दहता हूँ</poem>
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