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उफक के दरीचे से किरणों ने झांका
सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
परिंदों की आवाज़ से खेत चौंके
हसीं शबनम-आलूद पगडंडियों से
वो दूर एक टीले पे आँचल सा झलका