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01:45, 2 जनवरी 2011 <poem>तुम्हारा गम छुपाना आ गया है
हमें भी मुस्कुराना आ गया है
बहुत खुश हैं यकीन उनको दिला कर
हमें उनको भुलाना आ गया है
बता दे कोई इन तारीकियों को
हमें भी घर जलाना आ गया है
सफ़र पूरा हुआ लो ज़िन्दगी का
हमारा तो ठिकाना आ गया है
हमें भी यह कभी धोखा हुआ था
हमें फ़न शायराना आ गया है
'अनिल' सोहबत का है तेरी असर ये
उन्हें भी गुनगुनाना आ गया है </poem>