भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाला जगदलपुरी |संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाड…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाला जगदलपुरी
|संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाड़ते परिवेश / लाला जगदलपुरी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
छूट गये वनपाखी, रात के बसेरे
जाल धर निकल पडे, मगन मन मछेरे

पानी में संत चुप खडे उजले उजले,
कौन सुनेगा मछली व्यर्थ किसे टेरे

कानों से टकराती सिसकियाँ नदी की,
पुरवा जब बहती है रोज मुँह अंधेरे

रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओरे मन
ना चंदा के घर, ना सूरज के डेरे

जुडे ही नहीं जिद्दी, किसी वंदना में,
कैसे समझाऊं मैं हाँथों को मेरे
</poem>
750
edits