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गुपतेसरा / कैलाश गौतम

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गुपतेसरा ने खोली है दुकान गाँव में
 काट रहा चाँदी वह बेईमान गाँव में।में ।गाँजा है, भाँग है, अफीमअफ़ीम, चरस -दारू है ठेंगे पर देश और संविधान गाँव में।में ।
चाय पान बीड़ी सिगरेट तो बहाना है
 असली है चकलाघर बेज़ुबान गाँव में।में ।
बम चाकू बंदूकों पिस्तौलों का धंधा
हथियारों की जैसे एक खान गाँव में ।
हथियारों की जैसे एक खान गाँव में।  बिमली का पिट पेट गिरा कमली का फूला है सोते हैं थाने के दो दीवान गाँव में।में ।खिसकी है पाँव की ज़मीन अभी थोड़ी -सी बाकी बाक़ी है गिरने को आसमान गाँव में।में ।
सूखा है पाला है बाढ़ है वसूली है
 किसको दे कंधे का हल किसान गाँव में।में ।
गुपतेसरा गुंडा है और पहुँच वाला है
 कैसे हो लोगों को इत्मीनान गाँव में।में ।</poem>
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