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|संग्रह=
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{{KKCatGeet}}</poem>जैसी नेतागिरी है जी वैसी अफसरशाही अफ़सरशाही है
सिर्फ झूठ की पैठ सदन में सच के लिए मनाही है
चारों ओर तबाही भइया
चारों ओर तबाही है।है ।
संविधान की ऐसी-तैसी करनेवाला नायक है
बलात्कार अपहरण डकैती सबमें दक्ष विधायक है
चोर वहाँ का राजा है
सहयोगी जहाँ सिपाही है ।
लाखों टन सड़ता अनाज है
किसकी लापरवाही है।है ।
पैरों की जूती है जनता, जनता की परवाह नहीं
जनता भी क्या करे बिचारी, उसके आगे राह नहीं
बेटा है बेकार पड़ा है
बिटिया है अनब्याही है।है ।
जैसी होती है तैय्यारी वैसी ही तैय्यारी है
तैय्यारी से लगता है जल्दी चुनाव की बारी है
संतो में मुल्लाओं में
भक्तों की आवाजाही है।है ।</poem>