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|संग्रह=
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तुमने छुआ, जगा मन मेरा
सच कहता हूँ मैं
मेरा तो अब हुआ सबेरा
सच कहता हूँ मैं ।
सारी उलझन सुलझ गई है
तेरे दर्शन से
मेरे मन में समा गया तू
मन के दर्पण से
मैं हूँ तेरा सांप संपेरासाँप-सँपेरा
सच कहता हूँ मैं
आधा-तीहा नहीं रहा मैं
पूरमपूर हुआ
जैसा बाहर वैसा भीतर
मैं भरपूर हुआ
हुई रोशनी, छंटा अंधेराछँटा अँधेरासच कहता हूँ मैं।मैं ।</poem>