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यह सूर के अंतर की झाँकी / कुमार अनिल
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14:53, 4 जनवरी 2011
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<poem>यह सूर के अंतर की झाँकी,
यह तुलसी का अरमान भी है ।
यह भूषण की ललकार भी है,
हिंदी भाषा ही नहीं केवल,
यह भारत की पहचान भी है ।
</poem>
अनिल जनविजय
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