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शोषक रे अविचल ! / मनुज देपावत

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शोषक रे अविचल ! / 'मनुज' देपावत का नाम बदलकर शोषक रे अविचल ! / मनुज देपावत कर दिया गया है
भार-वाहिनी धरा ,
किन्तु तुमको ल़े ले लज्जित !अरे नरक के कीट!,वासना-पंक-निमज्जित!
मृत मानवता के अधरों पर ,
मृत्यु-झाग से !
वसुंधरा पर कौन पड़े ,तुम शेष नाग से !
वसुधा के वपु पर रे !
कलुष दाग तुम निश्चल !
शोषक रे ! दुर्दांत -दस्यु !, गर्वोन्नत प्रतिपल !
</poem>
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