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पाखी / अर्जुनदेव चारण

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= अर्जुनदेव चारण |संग्रह=}}‎{{KKCatKavita‎}}<poem>सावचेत हौ चुग्गौ चुगजै
दांणां रै पेटै
मत लीजै पींजरौ
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