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उड़कर आए / केदारनाथ अग्रवाल

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मैं नहीं चाहता तुम्हें देखना,
तुम्हें देखकर भ्रम में रहना।
तुम क्या संकट काट सकोगे?
शक्तिहीन केवल चिड़िया हो।
विष पीते तो मर ही जाते,
उड़कर यहाँ न आ पाते।
तुम वरदान भला क्या दोगे?
खुद फिरते हो मारे मारे।
शापित हो तुम,
चक्कर-मक्कर काट रहे हो,
तुम क्या दोगे त्राण किसी को?
भ्रम को पाले पूज्य बने हो,पूज्य बने तुम,झूठे मन से हर्षित हो लो,मुझे न हर्षित कर पाओगे। जाओ,दाना चुगो,पेट की भूख मिटाओशंकर के प्रतिरूप न बनकरभ्रम फैलाओ,नहीं ठगो, अबउड़कर जाओझाड़ी-जंगल मेंछिप जाओ,झूठ प्रतिष्ठा नहीं कमाओ। रचनाकाल: ११३०-१२-१९९२१९९१
</poem>
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