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|रचनाकार=गोपाल दास गोपालदास नीरज
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<poem>
है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहियेचाहिएजिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहियेचाहिए
रोज रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबाज़ों लिबासों की तरहअब जनाजा जोर जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहियेचाहिए
अब भी कुछ लोगो ने बेचीं बेची है न अपनी आत्माये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहियेचाहिए
फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया
जीस्त को फौलाद फ़ौलाद के साचे साँचे में ढलना चाहियेचाहिए
छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक्त वक़्त तोआँख से आंसू आँसू नहीं शोला निकलना चाहियेचाहिए
दिल जवां, सपने जवांजवाँ, मौसम जवांजवाँ, शब् भी जवांजवाँतुझको मुझसे इस समय सुने सूने में मिलना चाहियेचाहिए
</poem>
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