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Kavita Kosh से
हवा धूल में बटमारीपन, छाया की तासीर गरम
सरमायेदारों के कपड़े, पहने घूम रहा मौसम
नद्दी-नालों की ज़ंज़ीरें ज़ंजीरें हरियल टहनीदार नियम
न्यायाधीश पहाड़ मौन हैं, खा-पीकर रिश्वती रकम
सत्ता के जंगल की पत्ती-पत्ती बेईमान है !