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सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं जाय । <BR/>
रहिमन सेल्ह जोई सहै, सो जागीरें खाय ॥ 209 ॥ <BR/><BR/>
रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की थाक । <BR/>
दांत दिखावत दीन है, चलत घिसावत नाक ॥ 210 ॥ <BR/><BR/>
रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग । <BR/>
करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग ॥ 220 ॥ <BR/><BR/>
रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत । <BR/>
चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत ॥ 221 ॥ <BR/><BR/>
रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो न प्रीति । <BR/>
काटे चाटे स्वान के, दुहूं भांति विपरीरि विपरीति ॥ 230 ॥ <BR/><BR/>
रहिमन भेषज के किए, काल जीति जो जात । <BR/>
बड़े-बड़े समरथ भये, तौ न कोउ मरि जात ॥ 231 ॥ <BR/><BR/>
रहिमन जग जीवन बड़े, काहु न देखे नैन । <BR/>
जाय दसानन अछत ही, कपि लागे गथ लैन ॥ 232 ॥ <BR/><BR/>
स्वारथ रचत रहीम सब, औगुनहूं जग मांहि । <BR/>
बड़े बड़े बैठे लखौ, पथ पथ कूबर छांहि ॥ 242 ॥ <BR/><BR/>
संपति भरम गंवाइ कै, हाथ रहत कछु नाहिं । <BR/>
ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस अकासहुं मांहि ॥ 243 ॥ <BR/><BR/>
यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय । <BR/>
ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नाय ॥ 253 ॥ <BR/><BR/>
रजपूती चांवर भरी, जो कदाच घटि जाय । <BR/>
कै रहीम मरिबो भलो, कै स्वदेस तजि जाय ॥ 254 ॥ <BR/><BR/>