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रसूल / परिचय

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भोजपुरी के शेक्सपियर नाम से चर्चित भिखारी ठाकुर, नाच या नौटंकी की जिस परम्परा के लोक कलाकार थे, उस परम्परा के पिता थे रसूल मियां (रसूल अंसारी )। भिखारी ठाकुर की महानता में कुछ योगदान रसूल का भी है। देखा जाए तो बीसवीं सदी के पहले-दूसरे दशक में अंकुरित बिदेशिया के बीज रसूल में मिलते हैं। बिदेशिया फिल्म की यह देन है कि भोजपुरिया समाज ने न केवल भिखारी ठाकुर की शक्ल देखी अपितु उस महान लोक कलाकार से परिचित हुआ। लेकिन रसूल के साथ न तो ऐसा संयोग बना और न उनके दौर में भोजपुरी फिल्में बननीं शुरू हुई थीं। हमारे पास भिखारी ठाकुर के बारे में प्रचुर सामग्री उपलब्ध है। बिहार सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया था पर उसी प्रदेश के रसूल का कोई नामलेवा नहीं रहा। जबकि रसूल ने अपने नाट्य मंचों और रचनाओं के माध्यम से न केवल आजादी की लड़ाई में योगदान दिया है अपितु विदेशी सत्ता का विरोध कर जेल भी गए हैं । हिन्दू-मुस्लिम एकता की जो छाप रसूल छोड़ गए हैं वह अन्यत्र दुर्लभ है। वह अल्लाह, राम, कृष्ण, वेद, पुराण सबके साथ रच-बस गए हैं। वह भारतीय जीवन मीमांसा का वर्णन करते हुए कबीर की वाणी में प्रवेश कर जाते हैं ।
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