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हारमोनियम / मंगलेश डबराल

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पानी बहने और तारे चमकने की तरह

एक कठिन संगीतहीन संसार में

वह भी बजा कुछ देर तक

वह कमरे के बीचोंबीच रखा था

उजाले में

उसके कारण जानी गई यह जगह

लोग आते और उसके चारों ओर बैठते


अब वह पड़ा है बाकी सामान के बीच

पीतल लोहे और लकड़ी के साथ

उसे बजाने पर अब राग दुर्गा या पहाड़ी के स्वर नहीं आते

सिर्फ़ एक उसाँस सुनाई देती है

कभी-कभी वह छिप जाता है एक पुश्तैनी बक्से में

मिज़ाजपुर्सी के लिए आए लोगों से

बचने की कोशिश करता हुआ


(1993 में रचित)
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