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दु:ख की बात / लीलाधर जगूड़ी

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|रचनाकार = लीलाधर जगूड़ी
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निरर्थकताओं को सार्थकताओं में बदलने के लिए
 
हम संघर्ष करते हैं
 
बदहालियों को ख़ुशहालियों में बदलने के लिए
 
हम संघर्ष करते हैं
 
क्योंकि कमियाँ जब अभाव बन जाती हैं
 
तो वे बीमारियाँ बन जाती हैं
 
कोई डाक्टर नहीं बताता कि क्या—क्या अभाव है किसी के जीवन में
 
वे सिर्फ़ उन जगहों के बारे में पूछते हैं
 
जो दुख रही होती हैं
 
या जानलेवा दर्द उठा रही होती हैं
 
मौत से फिर कभी हम बाद में मरते हैं
 
और फिर मौत को ही जिम्मेदार ठहराते हैं अपनी मौत का
 
आज शरीर विज्ञान में हो रहे अनुसंधान की एक ख़बर पढ़ी
 
कि उस दवा के सेवन से अब आदमी बूढ़ा नहीं होगा
 यह कितने दु:ख की बात है कि आदमी जवान रहेगा और मर जाएगा.</poem>
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