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{{KKRachna
|रचनाकार = लीलाधर जगूड़ी
}}{{KKCatKavita‎}}<poem>पुरानेपन की उम्र पुरानों से भी पुरानी —धुरानी पुरानी—धुरानी हैं फिर भी आग जो वर्तमान में न्हीं नहीं है इतिहास से 
चुरानी है वर्तमान को आधुनिक राख में बदलने के लिए
 
आधुनिक राख का मिट्टी बनना
 थेड़ाथोड़ा-थोड़ा उसका पुराना बनना है  
कुछ नई प्रजाति के बूटे फूटे हैं
वाकई शायद थोड़ा-थोड़ा पुराना हुआ मैं
वाकई शायद थोड़ा—थोड़ा पुराना हुआ मैं   थोड़ा—थोड़ा थोड़ा-थोड़ा पुराना हुआ हूँ कि मरा हुआ भी काम करने लगूँ 
और नयों को मुझे हर बार नये सिरे से दफ़नाने की ज़रूरत
 
महसूस हो
 पुरानों कओ को नयापन हमेशा चौंकाता है जो उन्होंने तब पाया था जब वे नये—नये नए-नए थे 
चेहरे पर अनजानी ख़ुशी कस नया ठिकाना दमकता है
जब किसी में नया पुरानापन देखता हूँ
 जो धमनियों को धौंका देता है भट्टी की तरह.</poem>
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